राजस्थान में नए जिले खत्म होने के बाद मचे सियासी घमासान के बीच आई बड़ी खबर
जयपुर। राजस्थान में नए जिलों के गठन और इनमें से कुछ का दर्जा खत्म करने को लेकर सियासी घमासान के बीच पिछले 43 वर्षों में घोषित जिलों के अब तक सुविधा सम्पन्न नहीं बन पाने पर भी सवाल उठ रहे हैं। बड़ी वजह यही सामने आती है कि सरकारें ऐसे फैसलों को लेकर राजधर्म निभाने में पीछे रह जाती हैं। इसका उदाहरण है परमेश चन्द्र कमेटी की सिफारिश के बावजूद चार शहर-कस्बों को करीब 15 वर्ष तक जिले का दर्जा पाने का इंतजार रहा। सियासी आरोप-प्रत्यारोप के बीच इन दिनों अनूपगढ़ व सांचोर जिले का दर्जा समाप्त होने पर सवाल उठ रहे हैं। हालांकि इस मसले पर राज्य सरकार का तर्क है कि कनेक्टिविटी बढ़ने के कारण दूरी के आधार पर जिला नहीं बनाया जा सकता। नए जिले बनाते समय पिछली कांग्रेस सरकार ने तर्क दिया था कि जिलों का आकार घटाने और पिछड़े इलाकों को जिला बनाने से विकास की रफ्तार बढ़ सकती है। इसी आधार पर 17 नए जिले बनाए गए। मौजूदा भाजपा सरकार 9 जिले समाप्त करने के बाद तर्क दे रही है कि किसी भी जिले में कम से कम अपने खर्च लायक राजस्व जुटाने की क्षमता तो हो। हालांकि आदिवासी, रेगिस्तानी क्षेत्रों को राजस्व व आबादी के पैमाने से छूट दी गई है। इस बीच जिलों के विकास को लेकर पड़ताल में सामने आया कि धौलपुर, राजसमंद सहित कई जिलों को देखकर आज भी जिले जैसा अहसास नहीं होता।